टॉलीवुड न्यूज़ डेस्क – हर तरफ इस बात पर बहस चल रही है कि अल्लू अर्जुन ने अपनी आने वाली बहुचर्चित फिल्म पुष्पा 2 के ट्रेलर लॉन्च के लिए पटना को ही क्यों चुना। जबकि अपने ट्रेलर में पुष्पा खुद को इंटरनेशनल और बड़ा ब्रांड भी बताती है।
पटना गांधी मैदान में ट्रेलर लॉन्च के लिए जुटी भीड़ की तस्वीरें और वीडियो दिलचस्प कमेंट्स के साथ सोशल मीडिया पर शेयर किए जा रहे हैं। ऐतिहासिक गांधी मैदान में बिहारियों की ऐतिहासिक भीड़। ये मूल रूप से सिनेमा प्रेमी थे। ये अल्लू अर्जुन के दीवाने थे। पुष्पा झुकेगा नहीं… डायलॉग पर ये मर मिटने वाले थे। दाढ़ी के नीचे हथेली हिलाने के उनके अनोखे अंदाज के ये मुरीद थे।
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खेसारी और निरहुआ की हरकतों पर कभी भी हंसते-हंसते लोटपोट होने को तैयार रहने वाले उन बेफिक्र बिहारी युवाओं के लिए ये ऐतिहासिक मौका था। गांधी मैदान का खुला आसमान और मस्ती की मुफ्त बारिश। लूट सको तो लूट लो। आज पुष्पा के साथ श्रीवल्ली भी आ गई जिसे पुष्पा के कलाकार अल्लू अर्जुन और रश्मिका मंदाना ने बखूबी समझा। अल्लू ने अपना भाषण हिंदी में शुरू किया- ‘बिहार की पावन धरती को मेरा प्रणाम’। फिर रश्मिका ने भोजपुरी अपनाई- ‘का हाल बा, ठीक ठक बा नू!’ फिर हंसी! भोजपुरी लहजा पकड़ा गया। अल्लू ने अपनी खराब हिंदी के लिए माफी भी मांगी लेकिन उन्हें क्या पता था कि बिहार का आम दर्शक भी इतनी शुद्ध हिंदी नहीं बोल सकता। बाद में अल्लू ने हिंदी से अंग्रेजी अपना ली लेकिन रश्मिका ने भोजपुरी से हिंदी की राह पकड़ी। रश्मिका की चमकीली मुस्कान बिहारी युवाओं को दीवाना कर देने वाली थी
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आम दर्शकों का सिनेमा से जुड़ाव
अब इस विशाल प्रदर्शन को हम किसी आने वाली फिल्म के प्रमोशन तक कैसे सीमित कर सकते हैं। दरअसल, प्रमोशन के नाम पर यह मुंबई फिल्म इंडस्ट्री पर बड़ा हमला था। पुष्पा की टीम पटना में खुले आसमान के नीचे सिनेमा देखने वाले उस वर्ग को अपनी ओर खींचने में कामयाब रही, जिसे पिछले दो दशकों से उपेक्षित किया गया है। उन्हें मल्टीप्लेक्स से बाहर कर दिया गया था। और यह वर्ग आम दर्शक है। वही आम दर्शक जो कभी सस्ते दामों पर टिकट खरीदकर सामने के स्टॉल पर फिल्म देखने जाते थे और अपनी सीटियों और तालियों से हीरो को सुपरस्टार बना देते थे। लेकिन पटना में आम और वर्गीय दोनों तरह के दर्शकों का जमावड़ा था।
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साल 2000 की सहस्राब्दी के आसपास जब मल्टीप्लेक्स का जाल पहले बड़े शहरों में और फिर छोटे शहरों में फैला तो ये आम दर्शक फिल्में देखने से वंचित हो गए और सुपरस्टार्स के दिन लद गए। आज के मल्टीप्लेक्स के दौर में राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन भी शायद ही वो बड़ी सफलता हासिल कर पाते जो उन्हें कभी सिंगल स्क्रीन के आम दर्शकों के क्रेज की वजह से मिली थी। नब्बे के दशक में सलमान और शाहरुख भी आम दर्शकों का प्यार पाकर बड़े हुए। पटना के गांधी मैदान में एक बार फिर वही प्यार पाकर अल्लू अर्जुन और रश्मिका मंदाना बेहद खुश हुए। वे अपने भाषणों में पटना की जनता से प्यार की अपील करते रहे।
हिंदी फिल्मों के दर्शकों की संख्या में कमी क्यों आई?
सिनेमाघरों और महानगरों में हिंदी फिल्म निर्माण की तकनीक और विषय में आए बदलावों का फिल्म उद्योग के कारोबार पर पड़ने वाले असर पर विचार किए बिना बंबई फिल्म निर्माता पॉपकॉर्न पसंद दर्शकों के मूड के हिसाब से फिल्में बनाते रहे। बंबई फिल्म निर्माताओं को उन दर्शकों की ज्यादा परवाह थी जो मल्टीप्लेक्स में आ पाते थे और ज्यादा खर्च कर पाते थे। नतीजतन दर्शकों की संख्या कम होती गई और फिल्में फ्लॉप होती गईं। अगर कोविड के बाद के दौर की बात करें तो इस बीच दर्शक उन हिंदी फिल्मों को देखने के लिए थिएटर गए जो आम लोगों के मूड को झकझोरने की ताकत रखती थीं, जैसे द कश्मीर फाइल्स, द केरल स्टोरी, जवान, पठान, गधा, स्त्री 2 या भूल भुलैया 3 आदि।
अब बॉलीवुड को आम दर्शकों की चिंता करनी चाहिए
जाहिर है कि इन सितारों की पहुंच अब राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच गई है। इनकी डब फिल्में देशभर में हिंदी समेत सभी भाषाओं में खूब देखी जा रही हैं। पिछले दशक में बाहुबली, केजीएफ, पोन्नियम सेल्वम, आरआरआर या पुष्पा जैसी फिल्मों को अखिल भारतीय स्तर पर हर वर्ग ने पसंद किया। हिंदी पट्टी के आम दर्शकों को इनमें बंबइया फिल्मों के मुकाबले एक एक्स फैक्टर नजर आया। उन्हें एक भारतीय हॉलीवुड नजर आया, जिसमें भारतीयता और वैश्विक सिनेमा दोनों है। जबकि बंबइया फिल्म निर्माता अपने उत्पादों को मिक्स करने के लिए मशहूर हैं। कभी-कभी 12वीं फेल या मिसिंग लेडीज जैसी कंटेंट वाली औसत बजट की फिल्में पसंद आ जाती हैं या जिनमें मल्टीस्टार्स पूरे ताम-झाम के साथ हिस्सा लेते हैं तो दर्शक सिनेमा हॉल का रुख करते हैं या फिर साउथ सिनेमा या हॉलीवुड फिल्में देखना पसंद करते हैं। ऐसे में पटना से अल्लू अर्जुन का यह हमला बॉलीवुड वालों को सचेत करने वाला है। बॉलीवुड को आम दर्शकों की भावनाओं और संवेदनाओं का ख्याल रखने पर ध्यान देना चाहिए, वरना वे अपनी फिल्मों को आम दर्शकों तक कैसे पहुंचा पाएंगे?