Kolkata Rape Murder Case: कोलकाता रेप मर्डर केस में दोषी को उम्रकैद की सजा सुनाने वाले जज अनिर्बान दास ने पुलिस और अस्पताल प्रशासन को लेकर कई सवाल खड़े किए। जानें क्या कहा?
kolkata Rape Murder Case: कोलकाता में 8 अगस्त 2024 की रात आरजी कर मेडिकल कॉलेज में हुई ट्रेनी डॉक्टर की जघन्य हत्या और दुष्कर्म मामले में दोषी संजय रॉय को उम्रकैद की सजा दी गई हैं। सजा सुनाने वाले सियालदह सेशल कोर्ट के जस्टिस अनिर्बान दास ने कई कड़ी टिप्पणियां की। जज अनिर्बान दास ने कहा कि यह अपराध जघन्य है, लेकिन “रेयरेस्ट ऑफ रेयर” की श्रेणी में नहीं आता। जज ने कहा कि न्याय प्रक्रिया सबूतों पर आधारित होनी चाहिए, न कि जनता की भावनाओं पर।
पुलिस की लापरवाही पर जज ने जताई नाराजगी
जज दास ने पुलिस अधिकारियों की कार्यशैली पर सख्त टिप्पणी की। जज दास ने कहा, ताला पुलिस स्टेशन के एसआई का बयान चौंकाने वाला है। जनरल डायरी के समय को लेकर एसआई का बयान चौंकाने वाला था। विटनेस बॉक्स में अफसरों ने अपने गैरकानूनी कामों को बिना झिझक स्वीकार किया। यह न्याय प्रक्रिया के लिए बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। जज ने कहा कि इस तरह की लापरवाही न्याय प्रक्रिया के लिए नुकसानदेह है। इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
अस्पताल प्रशासन पर गंभीर आरोप
फैसले में जस्टिस अनिर्बान ने आरजी कर मेडिकल कॉलेज के प्रशासन को भी कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि अस्पताल पीड़िता की मौत को सुसाइड साबित करने की कोशिश करता रहा। जूनियर डॉक्टरों के विरोध के कारण यह साजिश नाकाम रही। यहां तक कि परिवार को बेटी का चेहरा देखने के लिए भी लंबा इंतजार करवाया गया। यह अस्पताल प्रशासन की लापरवाही और तथ्यों को छिपाने की कोशिश थी।
पुलिस कमिश्नर को दिखानी चाहिए सख्ती
जज अनिर्बान दास ने कोलकाता रेप-मर्डर मामले में पुलिस की कार्यशैली पर नाराजगी जाहिर करते हुए कोलकाता पुलिस कमिश्नर से सख्ती दिखाने की अपील की। उन्होंने कहा, पुलिस कमिश्नर को इस तरह की लापरवाही और गैरकानूनी हरकतों पर सख्त एक्शन लेना चाहिए। ऐसी घटनाओं के बाद दोषी अफसरों को बचने का कोई मौका नहीं दिया जाना चाहिए। ऐसे मामलों में जांच अधिकारियों को उचित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि वह संवेदनशील मामलों को गंभीरता और सही तरीके से संभाल सकें। जज ने कहा कि अगर पुलिस स्टेशन ने शुरुआत से ही मामले को गंभीरता से लिया होता, तो यह केस इतना नहीं उलझता ।
भावनाओं पर नहीं, सबूतों पर आधारित है न्याय
सजा सुनाते हुए जज ने कहा, ज्यूडिशियरी का काम जनता की भावनाओं पर नहीं, बल्कि सबूतों के आधार पर न्याय देना है।न्याय प्रणाली का मकसद निष्पक्ष और तथ्यात्मक निर्णय लेना है, न कि जनता की मांग के मुताबिक फैसले सुनाना। मौजूदा समय में न्याय की दुनिया में हमें आंख के बदले आंख और जान के बदले जान की भावना से ऊपर उठना चाहिए। न्याय का मतलब है तथ्यों और सबूतों के आधार पर दोषी को सजा देना, न कि भावनात्मक दबाव में आकर फैसला करना। यह मामला बेहद गंभीर था, लेकिन इसे “रेयरेस्ट ऑफ रेयर” (rarest of rare) की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। इसलिए दोषी को फांसी की सजा नहीं दी गई, बल्कि उम्रकैद दी गई।
पीड़ित परिवार ने मुआवजा ठुकराया
कोर्ट ने पीड़िता के परिवार को 17 लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया। इसमें से 10 लाख रुपए मौत के लिए और 7 लाख रुपए दुष्कर्म के लिए तय किए गए। हालांकि, पीड़िता के माता-पिता ने यह मुआवजा ठुकरा दिया और कहा कि उन्हें केवल न्याय चाहिए। जज ने परिवार को समझाते हुए कहा कि यह राशि उनकी बेटी की स्मृति के लिए इस्तेमाल की जा सकती है।