साध्वी बनने के लिए कड़े नियमों का पालन करना पड़ता है. कड़ी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. शराब और मांस छोड़ना पड़ता है. खाने में भी सिर्फ सादा, उबला हुआ खाना ही खा सकती हैं. उन्हें साधना करनी पड़ती है. साधवी बनने से पहले महिला के घर और उनके जन्म की कुंडली भी खंगाली जाती है.
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में जारी महाकुंभ के बीच साध्वी हर्षा रिछारिया सोशल मीडिया पर खूब वायरल हैं. उनकी जमकर चर्चा हो रही है. हर्षा के वीडियो और फोटोज शेयर किए जा रहे हैं. हालांकि कुछ लोग उनको ट्रोल भी कर रहे हैं और उनकी आस्था पर सवाल उठा रहे हैं.
हर्षा ने उन सभी ट्रोलर्स को जवाब देते हुए कहा कि वो साध्वी नहीं हैं. उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा कि उन्होंने कोई भी धार्मिक संस्कार नहीं करवाए हैं. इसलिए उन्हें साध्वी का टाइटल ना दिया जाएगा. हर्षा ने कहा कि मैंने सिर्फ गुरु दीक्षा और मंत्र दीक्षा ली है. मैं अभी इसका पालन कर रही हूं. हर्षा कहती हैं कि मैंने खुद को सनातन धर्म के लिए समर्पित कर दिया है.
हर्षा के बारे में जानिए
हर्षा उत्तराखंड की रहने वाली हैं. उन्होंने ग्लैमर की दुनिया छोड़कर आध्यात्म को अपनाया. उन्हें स्वामी कैलाशानंद गिरि ने आध्यात्म की दीक्षा दी. हर्षा देश और विदेश में ग्लैमर जगत का हिस्सा रही हैं.
हर्षा ने कहा, पेशेवर जीवन में दिखावे और आडंबर से भरी जिंदगी ने मुझे उबा दिया. मैंने महसूस किया कि वास्तविक सुख और शांति केवल सनातन धर्म की शरण में ही है. स्वामी कैलाशानंद गिरि से दीक्षा लेने के बाद मैंने जीवन का नया अर्थ समझा है.
कैसे बनती हैं साध्वी?
किसी भी महिला को साध्वी बनने के लिए कड़े प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. दीक्षा लेने के लिए महिला को संकल्प लेना होता है. उन्हें नियमों का पालन करना होता है. एक बार आप साध्वी बन गईं तो आपको ताउम्र भगवा पहनना होगा. शराब और मांस से दूर रहना होता है.
खाने में भी सिर्फ सादा, उबला हुआ खाना ही खा सकती हैं. उन्हें साधना करनी पड़ती है. साधवी बनने से पहले महिला के घर और उनके जन्म की कुंडली भी खंगाली जाती है. महिला साधु को साबित करना पड़ता है कि उसका परिवार और समाज से अब कोई रिश्ता नाता नहीं रह गया है.
ये होती है प्रक्रिया
गुरु की तलाश: साध्वी बनने के लिए सबसे पहले गुरु की तलाश करनी पड़ती है. वो दीक्षा देते हैं और साध्वी बनने के लिए आगे का रास्ता बताते हैं.
वैराग्य: संसारिक जीवन से मोह त्यागना पड़ता है. धार्मिक किताबों को पढ़ना, शास्त्रों के बारे में जानकारी हासिल करनी पड़ती है.
गुरुसेवा: एक बार जब आपको गुरु मिल गया तो फिर आपको अपना जीवन उनपर छोड़ देना होता है. उनकी सेवा करनी पड़ती है. उनके आदेशों का पालन करना होता है. ये शुरुआती प्रक्रिया होती है. आगे जाकर ये और भी कड़ी हो जाती है.