440 जिलों की पानी प्रदूषित? यहां नाइट्रेट की मात्रा ज्यादा मिली, जानें इसके खतरे

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सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड ने अपनी सालान रिपोर्ट में बताया है कि देश के 440 जिलों के पीने वाले पानी में नाइट्रेट की मात्रा ज्यादा मिली है. देश के 15 जिले क्रिटिकल जोन में हैं. रिपोर्ट की बड़ी बातें क्या रहीं और क्यों ये रिपोर्ट चिंताजनक है, आइये जानें.

सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड ने अपना सालाना रिपोर्ट प्रकाशित किया है. ये रिपोर्ट देश में भूजल – ग्राउंड वाटर की काफी चिंताजनक कहानी बयां करती है. रिपोर्ट के मुताबिक 440 जिलों के पीने वाले पानी में नाइट्रेट की मात्रा ज्यादा मिली है. पानी की गुणवत्ता जांचने के लिए 15 हजार 259 जगहों का परीक्षण हुआ. इसमें 20 फीसदी सैंपल पीने लायक नहीं लिकले. आइये जानें की इस रिपोर्ट की बड़ी बातें क्या रहीं और ये किस तरह के खतरे की तरफ इशारा कर रही है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और ब्यूरो ऑफ इंडिय स्टेंडर्ड्स के मानकों के लिहाज से 1 लीटर पानी में 45 मिलिग्राम से ज्यादा नाइट्रेट नहीं होना चाहिए. मगर देश के 779 में 440 जिले ऐसे मिले, जहां नाइट्रेट की मात्रा तय मानक से अधिक रही. राजस्थान, कर्नाटक और तमिलनाडु – ये तीन राज्य सबसे अधिक प्रभावित दिखलाई दिए. इन राज्यों के 40 फीसदी से भी ज्यादा पानी के नमूनों में प्रदूषण का स्तर खतरनाक दिखा.

किन राज्यों के नमूने ठीक मिले?
महाराष्ट्र में नाइट्रेट से प्रदूषित पानी का स्तर – करीब 36 फीसदी, तेलंगाना – 27 फीसदी, आंध्र प्रदेश – 24 फीसदी और मध्य प्रदेश में करीब 23 फीसदी रहा. सबसे दिलचस्प बात ये रही कि उत्तर पूर्वी राज्य – अरूणाचल प्रदेश, असम, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड के पानी के नमूने सुरक्षा मानकों के लिहाज से ठीक पाए गए. गोवा में भी चीजें उत्तर पूर्वी राज्यों ही की तरह ठीक रहीं. 2017 से 2023 के बीच में उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और हरियाणा में पानी की गुणवत्ता काफी प्रभावित हुई है.

देश के 15 जिले क्रिटिकल जोन में
इस स्टडी में 15 जिलों को सबसे खतरनाक जोन में पाया गया. इनमें सबसे अधिक जिले महाराष्ट्र के थे. मिसाल के तौर पर वर्धा, बुलढाणा, अमरावती, नांदेड़, बीड, जलगांव और यवतमाल. वहीं राजस्थान के बाड़मेर और जोधपुर, तेलंगाना के रंगारेड्डी, अदिलाबाद और सिद्दीपेट, तमिलनाडु का विल्लीपुरम, आंध्र प्रदेश का पलनाडु, पंजाब का बठिंडा सबसे ज्यादा प्रभावित रहने वाले जिलों में से रहे.

नाइट्रेट की मात्रा ज्यादा क्यों पाई जा रही?
अब सवाल आता है कि किन कारणों से इन इलाकों के ग्राउंड वाटर में नाइट्रेट की मात्रा बढ़ी हुई मिली. तो इसकी वजहें हैं. पहला – खेतों की ज्यादा सिंचाई करने से खाद में मौजूद नाइट्रेट मिट्टी के काफी नीचे चले जाते हैं और फिर पानी को प्रदूषित करते हैं. दूसरा – पालतू जानवरों से निकलने वाले अपशिष्ट का खराब प्रबंधन भी नाइट्रेट के बढ़ोतरी का कारण है. तीसरा – शहरीकरण में इजाफा की वजह से नाली और सीवेज का प्रदूषित होना भी आखिरकार पानी को प्रदूषित कर रहा है.

नाइट्रेट के अलावा फ्लोराइड, आर्सेनिक भी
स्टडी से यह भी मालूम चला है कि पानी में नाइट्रेट की ज्यादा मौजूदगी के अलावा और भी कई तरह की गुणवत्ता दोष है. मसलन – करीब 9 फीसदी नमूनों में फ्लोराइड की मौजूदगी मिली है. फ्लोराइड वाला ग्राउंड वाटर मुख्यतः राजस्थान, हरियाणा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में मिला है. वहीं, करीब 4 फीसदी नमूनों में आर्सेनिक के कण मिले हैं. आर्सेनिक खासकर पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, असम और मणिपुर के पानी के नमूनों में पए गए हैं.

नाइट्रेट वाले पानी से किस तरह के खतरे
अब आते हैं इसके खतरे पर.

नाइट्रेट नवजात बच्चों में ब्लू बेबी सिंड्रोम का कारण बन सकता है. ये एक ऐसी स्थिति होती है जिससे नवजात बच्चे का शरीर नीला या फिर बैंगनी होने लगता है. ये तब होता है जब शरीर में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन न हो. ज्यादा नाइट्रेट वाले पानी पीने से गैस्ट्रिक कैंसर होने का खतरा है. हालांकि, ये अभी भी दावा ही है, इसके पीछे वैज्ञानिक तौर पर कोई आम राय नहीं है. वहींं, नाइट्रेट की मौजूदगी वाले प्रदूषित पानी पीने से सर में दर्द, हृदय गति में तेजी, हड्डी और स्किन से जुड़ीं बीमारियों के बढ़ने का खतरा होता है.

Alisha Rana

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