इमरजेंसी कंगना रनौत की एक महत्वाकांक्षी फिल्म थी. कंगना को उम्मीद थी उन्हें इस फिल्म पर ज्यादा से ज्यादा लोगों का समर्थन मिलता, द कश्मीर फाइल्स या द केरल स्टोरी की तरह ब्लॉकबस्टर हो जाती है, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. आखिर इसकी वजह क्या है?
इमरजेंसी फिल्म की बॉक्स ऑफिस रिपोर्ट निराश करने वाली क्यों है, अब यह एक अहम सवाल है. 17 जनवरी को रिलीज होने के बाद से इमरजेंसी अभी तक पंद्रह करोड़ की कमाई का आंकड़ा भी पार नहीं कर सकी, जबकि इसकी लागत करीब साठ करोड़ की थी. कंगना रनौत की यह एक महत्वाकांक्षी फिल्म थी. मणिकर्णिका और थलैवी के बाद उनकी यह तीसरी बायोपिक है, जो कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के जीवन से जुड़े बड़े घटनाक्रमों पर आधारित है. रितेश शाह की लिखी पटकथा को कंगना की प्रोडक्शन कंपनी मणिकर्णिका फिल्म्स ने प्रोड्यूस किया और कंगना ने खुद ही इसका डायरेक्शन भी किया था. कंगना ने इस फिल्म को बहुत दिल से बनाने की कोशिश की है और काफी मेहनत की और रिसर्च में वक्त भी लगाया.
कंगना रनौत को उम्मीद थी उनकी यह फिल्म द कश्मीर फाइल्स या द केरल स्टोरी की तरह ब्लॉकबस्टर हो सकती है, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. थोड़ी-बहुत सराहना के बावजूद इमरजेंसी देखने के लिए लोगों में कोई खास उत्सुकता नहीं दिखी. रिलीज के करीब एक हफ्ते बाद भी इमरजेंसी को देखने वह दर्शक वर्ग भी सिनेमा हॉल की तरफ नहीं उमड़ा, जिसे कंगना का कथित समर्थक वर्ग कहा जाता है. वरना फिल्म की इतनी खराब दशा नहीं देखने को मिलती. आखिर ऐसा क्यों हुआ?
विवादों से बचने के लिए किताब का लिया सहारा
कंगना रनौत इमरजेंसी को बनाने की तैयारी कई सालों से कर रही थीं. फिल्म पर कोई विवाद ना हो, इसके लिए उन्होंने प्रसिद्ध लेखक-पत्रकार कूमी कपूर की पुस्तक (The Emergency: A Personal History) को चुना. यह पुस्तक आपातकाल पर आधारित है. हाल के सालों में फिल्ममेकर इतिहास के कालखंड या बायोपिक बनाने के लिए प्रसिद्ध पुस्तक का सहारा लेना मुनासिब समझने लगे हैं. विवादों से बचने का यह एक नया तरीका है. किसी भी तरह के विवाद होने पर फिल्ममेकर बड़ी चालाकी से खुद को बचाते हुए लेखक की ओर सवाल बढ़ा देते हैं. किताब में लिखे गये संदर्भों का हवाला दिया जाता है. जवाबदेही फिल्ममेकर की नहीं बल्कि लेखक हो जाती है.
बचाव के बावजूद इमरजेंसी के ट्रेलर पर विवाद
आज की तारीख में कंगना रनौत महज फिल्म अभिनेत्री नहीं बल्कि केंद्र में सत्तारूढ़ दल बीजेपी की मंडी सीट से सांसद भी हैं. उनकी हैसियत जनप्रतिनिधि की है. यही वजह है कि अपने बयान और फिल्मों के जरिए सरकार या पार्टी का भावनात्मक समर्थन देना अपना कर्तव्य समझती हैं. साल 2024 में आपातकाल की पचासवीं बरसी मनाई गई थी. इस दौरान केंद्र ने 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की. पार्टी सांसद होने के नाते कंगना रनौत ने इस मौके के लिए इमरजेंसी रिलीज करने की ठानी. लेकिन इमरजेंसी के पहले ट्रेलर के कुछ दृश्यों से विवाद पैदा हो गया था. खालिस्तान और आतंकवाद पर सिखों ने विरोध दर्ज किया और देखते ही देखते पंजाब में कंगना के खिलाफ प्रदर्शन होने लगे. विरोध इतना गहराया कि केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड से सर्टफिकेट नहीं मिला. कई कट्स के बाद फिल्म को हरी झंडी मिली.
फिल्म देखकर समर्थकों को क्यों लगा झटका?
अब जबकि 17 जनवरी को फिल्म रिलीज हुई तो ज्यादातर दर्शकों के लिए इसकी कहानी और इंदिरा गांधी का चरित्रांकन दंग करने वाला था. कंगना इस फिल्म की डायरेक्टर, प्रोड्यूसर और स्टोरी राइटर भी है लिहाजा इसकी पूरी जवाबदेही उसे मत्थे पर है. विरोध प्रदर्शनों के समय जैसा लोगों ने अनुमान लगाया था, फिल्म इसके ठीक उलट साबित हुई. कंगना ने फिल्म में इंदिरा गांधी के कैरेक्टर के साथ कई मोर्चे पर सहानुभूति रखती प्रतीत होती हैं. कंगना इंदिरा गांधी को कुछ यूं प्रस्तुत किया है, मानो उसके हर कड़े फैसले में उनका नहीं बल्कि उनके बेटे संजय गांधी का हाथ था.
पर्दे पर इंदिरा के कैरेक्टराइजेशन से लोग दंग
फिल्म में इंदिरा गांधी को आपातकाल की ज्यादतियों पर पश्चाताप भी करते हुए दिखाया गया है और 1977 में जनता पार्टी से हारने के बाद उन्हें नये सिरे से जमीन पर उतरकर मेहनत करने वाली, और हारी बाजी जीतने वाली बाजीगर की तरह पेश किया गया है. इस मोर्चे पर फिल्म में आपातकाल के खिलाफ कोई मुद्दा ही नहीं बन पाता और ना ही संविधान हत्या दिवस का समर्थन वाला स्वर दिखता है. इसके अलावा बतौर डायरेक्टर कंगना से एक और गलती हुई. भारतीय राजनीति के इतनी बड़ी हस्ती पर उन्होंने कमर्शियल जॉनर की फिल्म बना दी. इसमें इंदिरा गांधी, सैम मानेक शॉ, अटल बिहारी वाजपेयी और जय प्रकाश नारायण के किरदार गाते हुए दिखाई देते हैं. भला यह किसे रास आ सकता था. अनुपम खेर, श्रेयस तलपड़े, महिमा चौधरी, मिलिंद सोमन और सतीश कौशिक जैसे सितारे होने के बावजूद फिल्म लोगों को पसंद नहीं आ सकी. .